शिवलिंग विज्ञान,अध्यात्म व प्रकृति का अद्भुत समन्वय-शांडिल्य दुर्गेश 

सनातन धर्म में आस्था,विश्वास तथा गूढ़ व विज्ञान सम्मत जानकारी रखने वाले इं.शांडिल्य दुर्गेश ने शिवलिंग के आध्यात्मिक व वैज्ञानिक पहलू में प्रभावी साम्य स्थापित करने का एक स्पष्ट प्रयास किया है।शांडिल्य दुर्गेश के अनुसार वास्तव में यह सम्पूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है।बिंदु शक्ति है और नाद शिव।यही सब का आधार है-बिंदु एवं नाद अर्थात ऊर्जा(एनर्जी) और ध्वनि(साउंड) यह दो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का आधार है अर्थात् विश्व की सम्पूर्ण ऊर्जा ही शिवलिंग की प्रतीक है।शिवलिंग भगवान शिव की निराकार और साकार प्रकृति को दर्शाता है।शिवलिंग की बनावट और पूजा पद्धति प्राचीन भारतीय ज्ञान व आस्था को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ती है।शिवलिंग पंचमहाभूत—पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश का प्रतीक है।लिंग पुराण में शिवलिंग को “परं ज्योतिः” कहा गया है,जो सृष्टि के मूल और पंचमहाभूतों के संनादन को दर्शाता है।शिवलिंग का अंडाकार आकार ब्रह्मांड की संरचना से मेल खाता है,जैसा कि वैज्ञानिक अध्ययनों में “कॉस्मिक एग” के रूप में वर्णित है।शिवलिंग की ज्योति और निराकार प्रकृति ब्रह्मांडीय ऊर्जा (डार्क एनर्जी) से मेल खाती है।यह क्वांटम स्तर पर ऊर्जा के संनादन को दर्शाता है।आइंस्टीन का सिद्धांत और प्लांक की क्वांटम थ्योरी शिवलिंग को ऊर्जा और पदार्थ के संनादन के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।शिवलिंग का शीर्ष ऊर्जा (तरंग) और आधार,पदार्थ (कण) को दर्शाता है,जो क्वांटम भौतिकी की “वेव-पार्टिकल ड्यूएलिटी”(हाइजेनबर्ग) से मेल खाता है।शिवलिंग अद्वैत वेदांत में शिव (चेतना) और शक्ति (प्रकृति) के अभेद को दर्शाता है।यह ध्यान और कुंडलिनी जागरण का माध्यम है जो मन को समाधि की ओर ले जाता है।शिव पुराण (विद्येश्वर संहिता) में इसे “सर्वं विश्वं समाहितम्” कहा गया है।आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत में शिवलिंग ब्रह्म का प्रतीक है,जो निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में मौजूद है।सांख्य दर्शन में यह पुरुष (शिव) और प्रकृति के संतुलन को दर्शाता है।शिवलिंग का गोलाकार शीर्ष समय की चक्रीय प्रकृति को व्यक्त करता है,जो भारतीय दर्शन में कालचक्र के रूप में वर्णित है।शिवलिंग पूजा में “ॐ” और मंत्रों का उच्चारण 432 हर्ट्ज़ की आवृत्ति उत्पन्न करता है,जो प्रकृति की मूल आवृत्ति मानी जाती है।यह मस्तिष्क में अल्फा तरंगों को बढ़ाता है,जिससे शांति और एकाग्रता बढ़ती है।घंटियों का उपयोग रेजोनेंस पैदा करता है,जो पर्यावरण और शरीर में ऊर्जा संतुलन को प्रोत्साहित करता है।कार्ल जंग के अनुसार, शिवलिंग जैसे प्रतीक अवचेतन मन को प्रभावित करते हैं।मंत्र जाप और ध्यान से डोपामाइन और सेरोटोनिन का स्तर बढ़ता है,जो मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है,मस्तिष्क में शांति और एकाग्रता बढ़ती है,जो न्यूरोसाइंस में सिद्ध है।महाशिवरात्रि,श्रावण मास,सोमवार आदि जैसे शुभ अवसरों पर सामूहिक पूजा सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है,जो सामूहिक चेतना का प्रतीक है।शिवलिंग पर जल चढ़ाना जल की पवित्रता और संरक्षण के महत्व को दर्शाता है।प्राचीन भारत में शिव मंदिर जलाशयों के पास बनाए जाते थे,जो जल के महत्व को प्रदर्शित करते हैं।शिवलिंग का आधार प्रकृति का प्रतीक है,जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति भारतीय दर्शन की गहरी समझ को दर्शाता है।गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामेश्वरम में प्रभु श्रीराम द्वारा शिवलिंग स्थापना का वर्णन किया है,जो शिवलिंग पूजन के महत्ता को स्पष्ट करता है।भारत के 12 ज्योतिर्लिंग शिव की दिव्य ऊर्जा के केंद्र हैं,जो आध्यात्मिक ऊर्जा क्षेत्र के प्रतीक हैं।इससे भक्तों को ईश्वर के साथ एकात्मकता का अनुभव होता है।“लिंगं विश्वस्य संनादति यत्र सर्वं प्रतिष्ठितम्। शिवलिंगं परं ज्योतिः सर्वं तस्मिन् समाहितम्।” (लिंग पुराण)।वास्तव में शिवलिंग प्राचीन भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान का अनूठा संगम है।आध्यात्मिक और दार्शनिक रूप से यह अनंतता और सृष्टि के रहस्य को व्यक्त करता है,जबकि मनोवैज्ञानिक रूप से यह शांति और एकाग्रता प्रदान करता है।शिवलिंग हमें प्रकृति,विज्ञान और अध्यात्म के बीच संतुलन की सीख देता है,जो आज के इस तकनीकी और आधुनिक युग में भी प्रासंगिक है।

शांडिल्य दुर्गेश 
शांडिल्य दुर्गेश

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