क्रांति भूमि पट्टी से पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने सीखा था राजनीती का ककहरा
वजूद बचाए रखने का संघर्ष कर रही कोंग्रेस पार्टी को एक बार फिर रूर की धरती से शुरुवात करनी चाहिए

रूर का किसान आंदोलन देश के पहले प्रधानमंत्री पं. नेहरू की पहली गंवई पाठशाला थी, जिसने उन्हें भूख, गरीबी, बदहाली से साक्षात्कार कराया था। यहां आने पर उन्हें भारत को समझने और समझाने का अवसर मिला
गाँव लहरिया न्यूज/पट्टी
अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी दिलाने में क्रन्तिभूमि पट्टी का योगदान कम नहीं है। यहां पर बाबा रामचंद्र व झिंगुरी सिंह द्वारा चलाए गए किसान आंदोलन से प्रभावित होकर जून 1920 में पंडित जवाहर लाल नेहरू भी आए। तहसील के रूर गांव वह किसानों से मिले, उनको संबोधित किया व उनका उत्साहवर्धन किया था। हालांकि, उनसे जुड़े स्थल संवर नहीं सके। रूर का किसान आंदोलन देश के पहले प्रधानमंत्री पं. नेहरू की पहली गंवई पाठशाला थी, जिसने उन्हें भूख, गरीबी, बदहाली से साक्षात्कार कराया था। यहां आने पर उन्हें भारत को समझने और समझाने का अवसर मिला।
किसान आंदोलन को गतिशील बनाने के लिए नेहरू जी ने अवध किसान कांग्रेस का गठन भी कराया था। इसके अध्यक्ष पं. गौरीशंकर मिश्र बनाए गए थे। नेहरू के संपर्क में आ जाने से किसान आंदोलन ने राजनीतिक रूप ले लिया था। पट्टी के किसानों ने कई बार आनंद भवन में जाकर नेहरू से मुलाकात की। उनके बुलावे पर 21-22 सितंबर 1920 को नेहरू जी फिर प्रतापगढ़ आए। महुली एवं देवली गांव में किसान सभा को संबोधित किया था। जवाहरलाल नेहरू ने जितना अवध किसान आंदोलन को दिया नहीं, उससे कहीं ज्यादा, अपने लिए ग्रहण किया। अपनी राजनैतिक पकड़ को मजबूत बनाया और स्वयं को एक वैचारिक रूप से प्रतिस्थापित प्रधानमंत्री के पद तक ले जाने में सफल हुए। बाबा रामचंद्र ने किसान आंदोलन के राष्ट्रीय राजनीति की अगुवाई करने वाली कांग्रेस से जोड़ दिया था। हालाँकि नेहरू पर आरोप लगता रहा है की उन्होंने रूर से राजनीतिक समझ लेकर राजनीती के शिखर पर पहुँच गए लेकिन रूर को उपेक्षित छोड़ दिया। अपनी वजूद बचाए रखने का संघर्ष कर रही कोंग्रेस पार्टी को एक बार फिर रूर की धरती से शुरुवात करनी चाहिए।