गोलीकांड अपडेट : अधिवक्ता को जान से मारने की रची गई थी साजिस? घटना से पहले काटा गया सीसीटीवी कनेक्शन?
पट्टी तहसील में गोलियों की गूंज – अफरा-तफरी के बीच प्रशासन बेबस! पट्टी तहसील के एसडीएम चैंबर में हाल ही में हुई गोलीबारी ने पूरे परिसर में दहशत फैला दी।

गाँव लहरिया न्यूज़ /पट्टी
पट्टी तहसील के एसडीम चैंबर में विगत दिनों गोलियां तड़तड़ाई और देखते ही देखते पूरे परिसर में अफरा तफरी का माहौल हो गया । एक तरफ अधिकारी फौरन मौके सुरक्षा घेरे में मौके से हटे वहीं अधिवक्ताओं सहित सुदूर गांवों से आए मुवक्किल भी छिपने का स्थान खोजने लगे । पूरा शासन प्रशासन महकमा कल हलकान में दिखा ।
किसके इशारे पे चली गोली,किसको मारने की थी साजिश
दबी जुबान से लोग यह चर्चा कर रहे हैं कि कहीं यह हमला सुनियोजित तरीके से तो नहीं था । यदि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर नजर डाले तो घटना के पूर्व ही परिसर में लगे ज्यादातर कैमरों के तार काट कर खंभों में लपेट दिए गए थे । फिर अचानक से बहस के दौरान असलहा निकाल लेना अर्थात जान से मारने की नीयत से ही असलहा का इंतेज़ाम भी किया गया था । इन सबके पश्चात् सूत्र बताते हैं कि आरोपी असलहा हाथ में ले कर ही तहसील परिसर में ही सुरक्षित कहीं बैठा रहा फिर धीरे से मौका देख कर उसे सुरक्षित निकाल दिया गया । फिलहाल मामले की जाँच पुलिस द्वारा की जा रही है।
कौन है असली साजिशकर्ता, किसने दी पनाह
लोगों में चर्चा यह भी है कि यह घटना एक साजिश के तहत अंजाम दी गई है और साजिशकर्ता ने ही दो अधिवक्ताओं के आपसे विवाद का फायदा उठा कर अपनी रोटी सेंकने का पूरा इंतेज़ाम कर किया था । पहले हथियार उपलब्ध कराना, फिर छिपना और भागने में मदद करना और फिर अपने लड़कों को भेज कर परिसर में मारपीट की छिटपुट घटनाएं करा कर यह माहौल बनवाना की गोली नहीं चली है अथवा गोली आत्मरक्षा में चली है ये तथ्य इसी तरफ इशारा कर रहे हैं ।
बर्चस्व की लड़ाई और पट्टी बार का चुनाव तो नहीं है असली कारण
मामले को करीब से देखा जाए तो पट्टी बार एसोसिएशन के चुनाव सन्निकट हैं और इन चुनावों में बर्चस्व की लड़ाई आम बात रही है । तहसील संवाददाता की माने तो पिछले तकरीबन एक दशक से भी अधिक समय से तहसील में संघर्ष की स्थिति समाप्तप्राय थी क्योंकि दो घुर विरोधी गुट एक हो चले थे और मिलजुल कर चुनावी प्रक्रिया में भाग लेते थे । इस बीच तहसील में नए लोगों का आना जाना शुरू हुआ और नए लोगों के साथ नई प्रवृत्ति भी परिसर में आई । कुछ पंजीकृत अधिवक्ताओं की शह पर अब बिना रजिस्ट्रेशन के अधिवक्ता भी परिसर में घूमने तथा काम कराने लगे और अपना प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ने लगे । इसी बीच पट्टी बार का चुनाव आगामी महीनों में प्रस्तावित है और एक मामले में दो अधिवक्ताओं का आपसी संघर्ष साजिशकर्ता को अपने आपको स्थापित करने के अवसर के रूप में दिखाई पड़ा और उसने पूरी कहानी रच डाली । हालांकि कल एक बहुत बड़ी घटना होने से बची और संघर्ष समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता रवि सिंह, मनीष तिवारी बाल बाल बच गए ।
पुलिस प्रशासन अब तक गिरफ्तारी में असफल, मंशा पर उठ रहे सवाल
बहरहाल पूरे मामले में अभी तक पुलिस के हाथ खाली हैं और कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है न ही पुलिस इस गंभीर मामले के प्रति संवेदनशील दिखाई पड़ रही है जबकि कल यदि गोली अधिवक्ता को लग जाती तो आज शायद दृश्य बदल चुका होता । गांव लहरिया टीम शासन प्रशासन से यह अपील करती है कि मामले की तह तक जाए जांच करे तथा तहसील में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में करने हेतु प्रभावी एवं समुचित सुरक्षोपाय करे ।