प्रतापगढ़ के दिलीपुर थाना क्षेत्र में अपराधियों के हौसले बुलंद,कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह
पंद्रह दिन में दिलीपपुर में पांच बड़ी घटनाएं – महज तीन में मुकदमा, बाकी ‘राजनीतिक दबाव’ की भेंट चढ़ी पुलिसिया कार्रवाई

गाँव लहरिया न्यूज़ डेस्क/प्रतापगढ़।
दिलीपपुर थाना क्षेत्र में बीते पंद्रह दिनों में अपराध ने जैसे खुलेआम तांडव मचा रखा है। पांच बड़ी घटनाएं सामने आईं, लेकिन पुलिस महज खानापूरी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान बैठी। तीन मामलों में तो मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन बाकी दो मामलों में पीड़ितों की फरियाद भी पुलिस के लिए कोई मायने नहीं रखती दिखी। आरोपियों की गिरफ्तारी नाम की औपचारिकता बस “कोरम” तक सिमटी हुई है — असल में ज्यादातर आरोपी सरेआम घूम रहे हैं, जैसे उन्हें अपराध करने का लाइसेंस मिल गया हो।
पहली घटना – कार सवार दंपती पर हमला
दिलीपपुर क्षेत्र में कार सवार दंपती पर जानलेवा हमला हुआ। एफआईआर में सात नामजद व छह अज्ञात आरोपित दर्ज हैं। महज दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस की कार्यवाही ठंडी पड़ गई। बाकी हमलावर अब भी बेखौफ घूम रहे हैं।
दूसरी घटना – पैथोलॉजी संचालक से मारपीट
उड़ैयाडीह चौराहे पर पैथोलॉजी संचालक के साथ मारपीट की गई। मामूली धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ, और फिर पट्टी कोतवाली के एक चौकी इंचार्ज ने आरोपितों के दबाव में चुपचाप समझौता करवा दिया। पुलिस पीड़ित की नहीं, दबंगों की भाषा बोल रही है।
तीसरी घटना – जान से मारने की कोशिश
प्रजापतपुर गांव में स्कार्पियो सवार विकास सिंह को टक्कर मारकर जान से मारने का प्रयास किया गया। आरोपी अब तक पुलिस की पकड़ से दूर हैं, जैसे पुलिस ने उन्हें खुली छूट दे रखी हो।
चौथी घटना –प्रदेश अध्यक्ष पर हमला
उड़ैयाडीह में राम सेना के प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण मिश्रा पर सरेशाम हमला हुआ। सरकारी गनर तक को पीटा गया। पिता ने थाने में तहरीर दी, लेकिन दिलीपपुर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करना भी ज़रूरी नहीं समझा। क्यों? जवाब किसी के पास नहीं।
पांचवीं घटना – मुस्लिम युवक को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा
कंधई थाना के बक्शी डीह गांव के एक मुस्लिम युवक को पट्टी क्षेत्र के तीन युवकों ने दौड़ा-दौड़ाकर मारा-पीटा। पीड़ित किसी तरह जान बचा सका। पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन मौके पर कोई नहीं पहुंचा। एक बार फिर पुलिस की निष्क्रियता उजागर हुई।
सवाल यह नहीं कि घटनाएं क्यों हो रही हैं, सवाल यह है कि पुलिस चुप क्यों है?
इन लगातार हो रही वारदातों से दिलीपपुर पुलिस की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। अपराधियों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि वे बिना किसी डर के अपराध कर रहे हैं। पुलिस तमाशबीन बनी हुई है, कार्रवाई के नाम पर या तो लीपापोती हो रही है या दबाव में समझौते।क्या दिलीपपुर पुलिस राजनीतिक दबाव में काम कर रही है?या फिर आरोपियों को ‘खुला छूट’ देकर अपराध करने की खुली छूट दे दी गई है?
अब जनता पूछ रही है – कब मिलेगा न्याय?
हर पीड़ित थाने से लेकर कप्तान तक की चौखट पर चक्कर काट रहा है, लेकिन न्याय नहीं मिल रहा। पीड़ितों की एफआईआर दबाई जा रही हैं, आरोपियों को संरक्षण दिया जा रहा है।