हमारी बदलती पीढ़ी के युवा हो रहे हैं डिप्रेशन का शिकार

डब्ल्यूएचओ की मानें तो चार में से एक युवा हो रहा है डिप्रेशन का शिकार

हमारा भारत लगातार बदलता चला जा रहा है। हमारे देश की युवा पीढ़ी लगातार समाज से दूर होती चली जा रही है। वही डब्ल्यूएचओ की माने तो भारत में दिन प्रतिदिन युवा डिप्रेशन का शिकार होते चले जा रहे हैं। लगातार बदलती टेक्नोलॉजी और तरह-तरह की वेबसाइटों की वजह से युवाओं के ऊपर लगातार असर पड़ रहा है। डब्ल्यूएचओ का कहना की दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सर्वाधिक आत्महत्या की दर भारत में है।उसने ‘दक्षिण पूर्व एशिया में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति: कार्रवाई का सबूत’ नामक रिपोर्ट जारी की है, जो कहती है कि 2012 में भारत में 15-29 उम्र वर्ग के प्रति एक लाख व्यक्ति पर आत्महत्या दर 35.5 थीं.वही आज युवाओं की डिप्रेशन दर तीन फीसदी बढ़ चुकी है। लगातार बढ़ रही डिप्रेशन फीसदी संख्या से समाज पर इसका बुरा असर पड़ रहा है।ये सारे आंकड़े विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के हैं, जो साफतौर पर यह इशारा कर रहे हैं कि युवाओं का मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, उनके जीवन के सबसे रचनात्‍मक और उत्‍पादक वर्ष और यहां तक कि उनका जीवन भी खतरे में हैयुवा किसी भी देश और समाज की सबसे बड़ी पूंजी हैं. वही भविष्‍य के नागरिक हैं, राजनीतिज्ञ हैं, वैज्ञानिक हैं, लेखक-कलाकार हैं, सभ्‍यता का भविष्‍य हैं. लेकिन यदि उन युवाओं पर इस तरह का संकट मंडरा रहा हो, उनके मानसिक, भावनात्‍मक स्‍वास्‍थ्‍य को खतरा हो तो यह सिर्फ उन इंडीविजुएल्‍स पर आया संकट नहीं है. यह उस देश में मंडरा रहा संकट भी है. यह किसी भी राष्‍ट्र के लिए खतरे की घंटी है, चेतावनी का संकेत हैँ.

आशुतोष तिवारी, लेखक दैनिक समाचार में पत्रकार हैँ. पांच वर्ष का पत्रकारिता का अनुभव रखने वाले आशुतोष सामजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते हैँ. आशुतोष प्रतापगढ़ जनपद के कन्धई के जफरपुर गाँव के रहने वाले हैं.

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