बदलते दौर में हिंदी पत्रकारिता का रुतबा कायम, गांवों में भी बदली तस्वीर

देश आज हिंदी पत्रकारिता दिवस माना रहा है। 1826 में आज के दिन प्रथम हिंदी भाषी अखबार “उदन्त मार्तण्ड” का प्रकाशन हिंदी पत्रकारिता की नींव बना। निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता के माध्यम से लोकतंत्र को सशक्त करने तथा देश को दिशा देने का कार्य करते हैं।

पत्रकारिता साहित्य का एक भाग है। इसमें समायिकता है, साहस है। रोमांच है। सीखने और समझने के लिए एक यूनिवर्सिटी है। बस इच्छाएं बलवती हो और उसके रुधिर में ईमानदारी का लहू हो तो पत्रकारिता परिवर्तन का वाहक बन सकती है। हिंदी पत्रकारिता का जब श्री गणेश हुआ तो भारत मे कंपनी का शासन था। कंपनी का मतलब ही है शोषण, और भ्रष्टाचार उसमे भी तमाम आंग्ल भाषा के समाचार पत्र निकल रहे थे, उस समय राजधानी कोलकाता थी । बांग्ला भारतीयों का दबदबा था पढ़े लिखो की भाषा अंग्रेजी थी । कानपुर के रहने वाले जुगल किशोर शुक्ल के मन में हिंदी भाषियों के लिए समाचार पत्र निकालने की बात मन में सूझी और संकल्प से सिद्धि तक का सफर तय करते हुए उन्होंने 30 मई 1826 को साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला। पाठकों की संख्या उस समय उत्तर प्रदेश तथा हिंदीभाषी क्षेत्रों से रोजगार के लिए जाने वाले लोग ही थे । यह उसी तरह है जैसे अंधेरी रात में चलती हुई आंधी के बीच में दीपक जलाना और हथेलियों के सहारे बुझने से बचाना। जुगल किशोर ने शुरूआत किया लेकिन डेढ़ साल बाद अखबार को बंद करना पड़ा लेकिन लोगों के मन में हिंदी पत्रकारिता को लेकर जो अलख उन्होंने जगाई वह बाद में मील का पत्थर साबित हुई
आज के दौर में पत्रकारिता का स्वरूप बदल रहा है इंटरनेट और मोबाइल पर पत्रकारिता और पत्रकारों की भरमार है अब पत्रकार लोगों के लिए नहीं बल्कि अपने लोगों के लिए खबर लिखने का जरिया बना लिया है नेताओं के भ्रष्टाचार उनकी कमियों को ना दिखा करके विज्ञापन के लिए उनके मनमाफिक खबर प्रस्तुत करके उनके खासम खास बनने का दौर चल पड़ा है । ईमानदारी और समर्पण का अभाव दिखाई दे रहा है किसी भी घटना के संबंध में समाचार पत्र या इंटरनेट पर वही चीजें छप रही है जिसे अधिकारी अपना बयान दे रहे हैं पीड़ित की बात को दबाया जा रहा है कहीं ना कहीं प्रशासन और सत्ता का डर भी लोगों को सताता है।

आज से दो दशक पहले पत्रकार द्वारा लिखी गई खबर पर महकमे में खलबली मच जाती थी त्वरित विभागीय कार्यवाही होती थी। अब पत्रकारों की भरमार के कारण किसी विभाग में मनमाफिक काम न होने पर उसके खिलाफ अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए लिखना और उन्हें परेशान करना ऐसे भी मामले सामने आते रहते हैं जिसके कारण विभाग के शीर्ष अधिकारी उस पर कार्यवाही नहीं करते हैं।

सोशल मीडिया के दौर में पत्रकारिता के क्षेत्र में भी व्यापक बदलाव हुआ है। सरल, सहज हिंदी का असर धीरे-धीरे लोगों में बढ़ रहा है सोशल मीडिया के दौर में लोग अपनी बात रख रहे हैं देखा जाए तो हिंदी पत्रकारिता ने इंटरनेट मीडिया पर सब लोगों को पत्रकार बनने का सीधा अधिकार दिया है । अगर लोगों में समाज सेवा की भावना अपनी बात को विवाह किसे रखने का साहस और जुनून हो तो वह भी पत्रकार बनकर कार्य कर सकता है जिसके लिए किसी बड़े बैनर की जरूरत नहीं है । ऐसा नहीं है कि पत्रकार सिर्फ शोषण के विरुद्ध लिखते हैं सही तो यह है कि विज्ञापन के नाम पर पत्रकारों दबाव बनाया जाता है खबरों को लेकर समझौता किया जाता है और पत्रकारों पर इस बात का हमेशा परेशान रहता है कि वह अधिक से अधिक विज्ञापन संबंधित बैनर को दे सके जिससे पत्रकारों का भी शोषण होता है लेकिन अपने मान और सम्मान के लिए पत्रकार बैनर नहीं छोड़ पाते हैं।

आर्थिक युग में अब पत्रकारिता समाज सेवा की बजाए पेशा बन गई है वह दौर अब नहीं रहा जब लोग सिद्धांतवादी पत्रकारिता करते थे और खुद को उसी में समर्पित कर देते थे । डिजिटल युग में पत्रकारिता अब आसान हो गयी है अगर कोई व्यक्ति चाहे तो खुद का न्यूज़ पोर्टल खोल सकता है या फिर यूट्यूब चैनल खोल कर अपनी बात रख सकता है ऐसे दौर में पत्रकारिता के लिए भी एक मानक बनाए जाने की जरूरत है।

लेखक, मनोज यादव स्थानीय पत्रकार है.साथ ही साथ चर्चित कवि भी है.

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